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Friday, January 8, 2016

किसी सूरत भी नींद आती



किसी सूरत भी नींद आती नहीं मैं कैसे सो जाऊँ
कोई शय दिल को बहलाती नहीं मैं कैसे सो जाऊँ

अकेला पा के मुझ को याद उन की आ तो जाती है
मगर फिर लौट कर जाती नहीं मैं कैसे सो जाऊँ

जो ख़्वाबों में मेरे आ कर तसल्ली मुझ को देती थी
वो-सूरत अब नज़र आती नहीं मैं कैसे सो जाऊँ

तुम्हीं तो हो शब-ए-ग़म में जो मेरा साथ देते हो
सितारों तुम को नींद आती नहीं मैं कैसे सो जाऊँ
*शब-ए-ग़म=दुख भरी रात

जिसे अपना समझना था वो आँख अब अपनी दुश्मन है
कि ये रोने से बाज़ आती नहीं मैं कैसे सो जाऊँ

तेरी तस्वीर जो टूटे हुए दिल का सहारा थी
नज़र वो साफ़ अब आती नहीं मैं कैसे सो जाऊँ

घटा जो दिल से उठती है मिज़ा तक तो आ जाती है
मगर आँख उस को बरसाती नहीं मैं कैसे सो जाऊँ
*मिज़ा=पुतलियों

सितारे ये ख़बर लाए की अब वो भी परीशाँ हैं
सुना है उन को नींद आती नहीं, मैं कैसे सो जाऊँ

~ अनवर मिर्ज़ापुरी


  Dec 29, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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