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Friday, January 8, 2016

रुख़ से परदा उठा दे ज़रा साक़िया



रुख़ से परदा उठा दे ज़रा साक़िया
बस अभी रंग-ए-महफ़िल बदल जायेगा
है जो बेहोश वो होश में आयेगा
गिरनेवाला जो है वो संभल जायेगा

तुम तसल्ली ना दो सिर्फ़ बैठे रहो
वक़्त कुछ मेरे मरने का टल जायेगा
क्या ये कम है मसीहा के रहने ही से
मौत का भी इरादा बदल जायेगा

मेरा दामन तो जल ही चुका है मग़र
आँच तुम पर भी आये गंवारा नहीं
मेरे आँसू ना पोंछो ख़ुदा के लिये
वरना दामन तुम्हारा भी जल जायेगा

तीर की जाँ है दिल, दिल की जाँ तीर है
तीर को ना यूँ खींचो कहा मान लो
तीर खींचा तो दिल भी निकल आयेगा
दिल जो निकला तो दम भी निकल जायेगा

फूल कुछ इस तरह तोड़ ऐ बाग़बाँ
शाख़ हिलने ना पाये ना आवाज़ हो
वरना गुलशन पे रौनक ना फ़िर आयेगी
हर कली का दिल जो दहल जायेगा

मेरी फ़रियाद से वो तड़प जायेंगे
मेरे दिल को मलाल इसका होगा मगर
क्या ये कम है वो बेनक़ाब आयेंगे
मरनेवाले का अरमाँ निकल जायेगा

इसके हँसने में रोने का अन्दाज़ है
ख़ाक उड़ाने में फ़रियाद का राज़ है
इसको छेड़ो ना ‘अनवर’ ख़ुदा के लिये
वरना बीमार का दम निकल जायेगा

~ अनवर मिर्ज़ापुरी


  Dec 21, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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