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Friday, January 15, 2016

तुम्हारे हाथ से टंक कर



तुम्हारे हाथ से टंक कर
बने हीरे, बने मोती
बटन मेरी कमीज़ों के ।

नयन का जागरण देतीं,
नहाई देह की छुअनें
कभी भीगी हुई अलकें
कभी ये चुंबनों के फूल
केसर गंध सी पलकें,
सवेरे ही सपन झूले
बने ये सावनी लोचन
कई त्यौहार तीजों के ।

बनी झंकार वीणा की
तुम्हारी चूड़ियों के हाथ में
यह चाय की प्याली,
थकावट की चिलकती धूप को
दो नैन हरियाली
तुम्हारी दृष्टियाँ छूकर
उभरने और जयादा लग गए हैं
रंग चीज़ों के ।

~ कुँअर बेचैन

 
  Jan 15, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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