इस दौर में ख़्वाहिशे-लज़्ज़ात न कर
मंज़िल की तरफ दौड़ यहाँ रात न कर
ख़्वाबों की हसीन दुनिया के पाले पोसे
ये वक़्त अमल का है, बहुत बात न कर।
Oct 10, 2015| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
मंज़िल की तरफ दौड़ यहाँ रात न कर
ख़्वाबों की हसीन दुनिया के पाले पोसे
ये वक़्त अमल का है, बहुत बात न कर।
*ख़्वाहिश= तमन्ना, इच्छा; लज़्ज़ात=मज़े
~ क़दीर सिद्दीक़ी
~ क़दीर सिद्दीक़ी
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