Disable Copy Text

Saturday, October 10, 2015

इस दौर में ख़्वाहिशे-लज़्ज़ात न कर

इस दौर में ख़्वाहिशे-लज़्ज़ात न कर
मंज़िल की तरफ दौड़ यहाँ रात न कर
ख़्वाबों की हसीन दुनिया के पाले पोसे
ये वक़्त अमल का है, बहुत बात न कर।

*ख़्वाहिश= तमन्ना, इच्छा; लज़्ज़ात=मज़े

~ क़दीर सिद्दीक़ी

  Oct 10, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment