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Monday, October 26, 2015

ख़्याल, सांस, नज़र, सोच



ख़्याल, सांस, नज़र, सोच - खोल कर दे दो
लबों से बोल उतारो, जुबां से आवाज़ें
हथेलियों से लकीरें उतारकर दे दो
हाँ, दे दो अपनी 'ख़ुदी' भी, कि 'ख़ुद' नहीं हो तुम
उतारों रूह से ये जिस्म का हसीं गहना
उठो दुआ से तो आमीन कह के रूह दे दो

*आमीन=तथास्तु, ईश्वर करे ऐसा ही हो।

~ गुलज़ार


  Oct 25, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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