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Thursday, October 29, 2015

ऐ दिल उन आँखों पर न जा



ऐ दिल उन आँखों पर न जा,
जिनमें वफ़ूरे-रंज (अधिक दु:ख) से
कुछ देर को तेरे लिए
आँसू अगर लहरा गए।

ये चन्द लम्हों की चमक
जो तुझको पागल कर गई
इन जुगनुओं के नूर से
चमकी है कब वो ज़िन्दगी
जिसके मुक़द्दर में रही
सुबहे-तलब से तीरगी (अँधेरा)।

किस सोच में गुमसुम है तू...?
ऐ बेख़बर! नादाँ न बन -
तेरी फ़सुर्दा (उदास) रूह को
चाहत के काँटों की तलब,
और उसके दामन में फ़क़त
हमदर्दियों के फूल हैं।

~ अहमद फ़राज़


  Oct 28, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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