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Sunday, October 11, 2015

रात भर दीदा-ए-नमनाक



रात भर दीदा-ए-नमनाक* में लहराते रहे।
सांस की तरह से आप आते रहे, जाते रहे
ख़ुश थे हम अपनी तमन्‍नाओं का ख्‍़वाब आयेगा
अपना अरमान बर-अफ़गंदा-नक़ाब* आयेगा।
नज़रें नीची किये शरमाए हुए आएगा
काकुलें* चेहरे पे बिखराए हुए आएगा।
आ गयी थी दिल-ए-मुज़्तर* में शिकेबाई*-सी।
बज रही थी मेरे ग़मख़ाने में शहनाई-सी
शब के जागे हुए तारों को भी नींद आने लगी
आपके आने की इक आस थी, अब जाने लगी
सुबह ने सेज से उठते हुए ली अंगड़ाई
ओ सबा* तू भी जो आई तो अकेली आई,

ओ सबा तू भी जो आई तो अकेली आई।

- दीदा-ए-नमनाक=भीगी आंखों
- बर-अफ़गंदा-नक़ाब=बिना परदा किये
- दिल-ए-मुज़्तर=बेचैन दिल
- शिकेबाई=चैन
- काकुलें=जुल्‍फ़
- सबा=पूरब से आने वाली हवा

~ मख़्दूम मोहिउद्दीन


  Oct 10, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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