Disable Copy Text
!->
Wednesday, October 21, 2015
जब चट्टानों से लिपटता है समंदर
जब चट्टानों से लिपटता है समंदर का शबाब
दूर तक मौज के रोने की सदा आती है
यक-ब-यक फिर यही टूटी हुई बिखरी हुई मौज
इक नई मौज में ढलने को पलट जाती है।
*शबाब=ज़ोर
~ अहमद नदीम क़ासमी
Oct 21, 2015| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment