Disable Copy Text

Tuesday, October 27, 2015

जीना अज़ाब क्यूँ है



जीना अज़ाब क्यूँ है ये क्या हो गया मुझे
किस शख़्स की लगी है भला बद-दुआ मुझे
*अज़ाब=सज़ा, तकलीफ़

मैं अपने आप से तो लड़ा हूँ तमाम उम्र
ऐ आसमान तू भी कभी आज़मा मुझे

बनना पड़ा है आप ही अपना ख़ुदा मुझे
किस कुफ्र की मिली है ख़ुदारा सजा मुझे
*कुफ्र=कृतघ्नता

निकले थे दोनों भेस बदल कर तो क्या अजब
मैं ढूंढता ख़ुदा को फिरा, और ख़ुदा मुझे

पूजेंगे मुझको गाँव के सब लोग एक दिन
मैं इक पुराना पेड़ हूँ, तू मत गिरा मुझे

इस घर के कोने कोने में यादों के भूत हैं
अलमारियां न खोल, बहुत मत डरा मुझे

यह कह कर मैंने रखा हर आइने का दिल
अगले जनम में रूप मिलेगा नया मुझे

तू मुतमईं नहीं है तो मुझे कब है ऐतराज
मिट्टी को फिर से गूंथ मेरी, फिर बना मुझे
*मुतमईं=संतुष्ट

~ सलमान अख़्तर


  Oct 27, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment