
अब जाके आह करने के आदाब आए है
दुनिया समझ रही है कि हम मुस्कुराए है
गुज़रे है मयकदे से जो तौबा के बाद हम
कुछ दूर आदतन भी कदम लड़खड़ाए है
इंसान जीतेजी करे तौबा ख़ताओ से
मजबूरियो ने कितने फ़रिश्ते बनाए है
~ ख़ुमार बाराबंकवी
Oct 17, 2015| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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