
मेरे दरवाज़े से अब चाँद को रुख़सत कर दो,
साथ आया है तुम्हारे जो तुम्हारे घर से
अपने माथे से हटा दो ये चमकता हुआ ताज
फेंक दो जिस्म से किरणों का सुनहरी ज़ेवर
तुम्ही तन्हा मेरे ग़म-खाने में आ सकती हो
एक मुद्दत से तुम्हारे ही लिए रखा है
मेरे जलते हुए सीने का दहकता हुआ चाँद
~ अली सरदार जाफ़री
साथ आया है तुम्हारे जो तुम्हारे घर से
अपने माथे से हटा दो ये चमकता हुआ ताज
फेंक दो जिस्म से किरणों का सुनहरी ज़ेवर
तुम्ही तन्हा मेरे ग़म-खाने में आ सकती हो
एक मुद्दत से तुम्हारे ही लिए रखा है
मेरे जलते हुए सीने का दहकता हुआ चाँद
~ अली सरदार जाफ़री
Oct 14, 2015| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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