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Wednesday, October 7, 2015

तेरे शहर में

 
हो गया हूँ हर तरफ़ बद-नाम तेरे शहर में
ये मिला है प्यार का इन'आम तेरे शहर में

जब सुनहरी चूड़ियाँ बजती हैं दिल के साज़ पर
नाचती है गर्दिश-ए-अय्याम तेरे शहर में
*गर्दिश-ए-अय्याम=कालचक्र, समय का लेखा

इस क़दर पाबंदियाँ आख़िर ये क्या अंधेर है
ले नहीं सकते तिरा ही नाम तेरे शहर में

अब तो यादों के उफ़ुक़ पर चाँद बन कर मुस्कुरा
रोते रोते हो गई है शाम तेरे शहर में
*उफ़ुक़=क्षितिज

कब खुलेगा तेरे मय-ख़ाने का दर मेरे लिए
फिर रहा हूँ ले के ख़ाली जाम तेरे शहर में

एक दीवाने ने कर ली ख़ुद-कुशी पिछले पहर
आ गया आख़िर उसे आराम तेरे शहर में

'प्रेम' यूसुफ़ तो नहीं लेकिन ब-अंदाज़-ए-दिगर
हो चुका है बार-हा नीलाम तेरे शहर में
*ब-अंदाज़-ए-दिगर=दूसरी तरह से

~ प्रेम वरबारतोनी


  Oct 7, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh 

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