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Thursday, October 15, 2015

एक बार तुम्हें देखा है।



चाँदनी रात में,
एक बार तुम्हें देखा है।

जागती थी जैसे साहिल पे कहीं,
लेके हाथों में कोई साजे-हसीं
एक रंगीन ग़ज़ल गाते हुए,फूल बरसाते हुए
प्यार छलकाते हुए ,
चाँदनी रात में,
एक बार तुम्हें देखा है।

तूने चेहरे पे झुकाया चेहरा ,
मैंने हाथों से छुपाया चेहरा,
लाज से शर्म से घबराते हुए ,
फूल बरसाते हुए, प्यार छलकाते हुए,
चाँदनी रात में
एक बार तुम्हें देखा है।

~ नक़्श लायलपुरी


  Oct 15, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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