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Saturday, April 30, 2016

तमाम उम्र की बेदारियां भी

तमाम उम्र की बेदारियां भी सह लेंगे
मिली है छाँव तो बस एक नींद सो लें आज
*बेदारियां=जागना

किसे ख़बर है कि कल ज़िंदगी कहाँ ले जाये
निगाह-ए-यार तिरे साथ ही न हो लें आज
*निगाह-ए-यार=प्रेयसी की नज़र

~ फ़रीद जावेद

  Apr 22, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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