Disable Copy Text

Saturday, April 30, 2016

इक रात में सौ बार जला




इक रात में सौ बार जला और बुझा हूँ
मुफ़लिस का दिया हूँ मगर आँधी से लड़ा हूँ
*मुफ़लिस= ग़रीब

जो कहना हो कहिए कि अभी जाग रहा हूँ
सोऊँगा तो सो जाऊँगा दिन भर का थका हूँ

कंदील समझ कर कोई सर काट न ले जाए
ताजिर हूँ उजाले का अँधेरे में खड़ा हूँ
*कंदील=फानूस; ताजिर=व्यापारी

वो आईना हूँ जो कभी कमरे में सजा था
अब गिर के जो टूटा हूँ तो रस्ते में पड़ा हूँ

दुनिया का कोई हादसा ख़ाली नहीं मुझसे
मैं ख़ाक हूँ, मैं आग हूँ, पानी हूँ, हवा हूँ

मिल जाऊँगा दरिया में तो हो जाऊँगा दरिया
सिर्फ़ इसलिए क़तरा हूँ कि मैं दरिया से जुदा हूँ

हर दौर ने बख़्शी मुझे मेराजे मौहब्बत
नेज़े पे चढ़ा हूँ कभी सूलह पे चढ़ा हूँ
*मेराज=(स्वर्ग ले जाने वाली) सीढ़ी; नेज़े=भाले; सूलह=सूली

दुनिया से निराली है 'नज़ीर' अपनी कहानी
अंगारों से बच निकला हूँ फूलों से जला हूँ

‍~ नज़ीर बनारसी


  Apr 18, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment