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Friday, April 8, 2016

छिटक रही है चाँदनी




छिटक रही है चाँदनी, मदमाती उन्मादिनी
कलगी-मौर सजाव ले कास हुए हैं बावले
पकी ज्वार से निकल शशों की जोड़ी गई फलाँगती-
सन्नाटे में बाँक नदी की जगी चमक कर झाँकती!

*कलगी-मौर=(लम्बी घास पर निकले) फूलों से तात्पर्य; कास=लम्बी घास; शशों=खरगोशों; बाँक=टेढापन

कुहरा झीना और महीन, झर-झर पड़े अकासनीम
उजली-लालिम मालती गंध के डोरे डालती,
मन में दुबकी है हुलास ज्यों परछाईं हो चोर की-
तेरी बाट अगोरते ये आँखें हुईं चकोर की!

*अकासनीम=नीम पर पनपने वाली एक तरह की बेल; मालती=एक प्रकार की लता, जिसमें सफेद रंग के सुगंधित फूल लगते हैं; बाट=राह; अगोरते=अपलक देखते

‍ ~ अज्ञेय
  Mar 31, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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