
किस क़दर सर्द है यह रात, अंधेरे ने कहा
मेरे दुशमन तो हज़ारों हैं - कोई तो बोले
चांद की क़ाश भी तहलील हुई शाम के साथ
और सितारे तो संभलने भी न पाए थे अभी
*क़ाश=टुकडा(फांक); तहलील=घुलना
कि घटा आई, उमड़ते हुए गेसू खोले
वह जो आई थी तो टूटके बरसी होती
मगर एक बूंद भी टपकी न मेरे दामन पर
सिर्फ़ यख़-बस्ता हवाओं के नुकीले झोंके
*यख़-बस्ता=बहुत ठंढी
मेरे सीने में उतरते रहे, खंजर बनकर
खोई आवाज़ नहीं- कोई भी आवाज़ नहीं
चार जानिब से सिमटता हुआ सन्नाटा है
मैंनें किस कर्ब से इस शब का सफ़र काटा है
*जानिब=ओर; कर्ब=दुख; शब=रात
दुशमनों! तुमको मेरे जब्रे-मुसलसल की कसम
मेरे दिल पर कोई घाव ही लगाकर देखो
*जब्रे-मुसलसल=निरंतर अत्याचार
वह अदावत ही सही, तुमसे मगर रब्त तो है
मेरे सीने पे अलाव ही लगाकर देखो
*अदावत=दुश्मनी; रब्त=लगाव
~ अहमद नदीम क़ासमी
Apr 06, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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