
दीवाना बनाना है तो, दीवाना बना दे
वरना कहीं तक़दीर, तमाशा न बना दे
ए देखनेवालों मुझे हंस हंस के न देखो
तुम को भी मोहब्बत कहीं मुझ सा न बना दे
मैं ढूँढ रहा हूँ मेरी वो शम्मा कहाँ है
जो बज़म की हर चीज़ को परवाना बना दे
*बज़म=महफ़िल
आख़िर कोई सूरत भी तो हो खाना-ए-दिल की
काबा नहीं बनता है, तो बुत-खाना बना दे
*खाना-ए-दिल=दिल का घर
'बहज़ाद' हर एक जाम पे एक सजदा-ए-मस्ती
हर ज़र्रे को संग-ए-दर-ए-जानां न बना दे
*सजदा=प्रार्थना; संग-ए-दर-ए-जानां= महबूब के दरवाज़े का पत्थर
~ बहज़ाद लखनवी
Apr 16, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
https://www.youtube.com/watch?v=sG6dK3a1dyk
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