
बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती है
हाए क्या चीज़ ग़रीब-उल-वतनी होती है
*ग़रीब-उल-वतनी=देश से बाहर रहना
दिन को इक नूर बरसता है मिरी तुर्बत पर
रात को चादर-ए-महताब तनी होती है
*नूर=प्रकाश; तुर्बत=मकबरा; महताब=चांद(नी)
रूत बदलते ही बदल जाती है नीयत मेरी
जब बहार आती है तौबा-शिकनी होती है
ग़ैर के बस में तुम्हें सुन के ये कह उठता हूँ
ऐसी तक़दीर भी अल्लाह ग़नी होती है
*ग़नी=समृद्ध
न बढ़े बात अगर खुल के करें वो बातें
बाइस-ए-तूल-ए-सुख़न कम-सुख़नी होती है
*ज़्यादा बोलने का नतीज़ा; कम-सुख़नी=कम बातचीत
लुट गया वो तिरे कूचे में धरा जिस ने क़दम
इस तरह की भी कहीं राह-ज़नी होती है
*कूचा=गली; राह-ज़नी=लूट लेना
हुस्न वालों को ज़िद आ जाए ख़ुदा ये न करे
कर गुज़रते हैं जो कुछ जी में ठनी होती है
हिज्र में ज़हर है साग़र का लगाना मुँह से
मय की जो बूँद है हीरे की कनी होती है
*हिज्र=जुदाई; कनी=कणिका
मय-कशों को न कभी फ़िक्र-ए-कम-ओ-बेश रही
ऐसे लोगों की तबीअत भी ग़नी होती है
*फ़िक्र-ए-कम-ओ-बेश=कम या ज़्यादा होने की चिंता
हूक उठती है अगर ज़ब्त-ए-फ़ुगाँ करता हूँ
साँस रूकती है तो बरछी की अनी होती है
*ज़ब्त-ए-फ़ुगाँ=दर्द की बर्दाईश; अनी=नोक
अक्स की उन पर नज़र आईने पर उन की निगाह
दो कमाँ-दारों में नावक-फ़गनी होती है
*कमाँ-दारों=बिना किसी कमी के; नावक-फ़गनी=(छोटे छोटे) तीर चलाना
पी लो दो घूँट कि साकी की रहे बात ‘हफीज़’
साफ़ इंकार में ख़ातिर-शिकनी होती है
*ख़ातिर-शिकनी=मेज़बान की बेइज्जती
~ हफीज़ जौनपुरी
हाए क्या चीज़ ग़रीब-उल-वतनी होती है
*ग़रीब-उल-वतनी=देश से बाहर रहना
दिन को इक नूर बरसता है मिरी तुर्बत पर
रात को चादर-ए-महताब तनी होती है
*नूर=प्रकाश; तुर्बत=मकबरा; महताब=चांद(नी)
रूत बदलते ही बदल जाती है नीयत मेरी
जब बहार आती है तौबा-शिकनी होती है
ग़ैर के बस में तुम्हें सुन के ये कह उठता हूँ
ऐसी तक़दीर भी अल्लाह ग़नी होती है
*ग़नी=समृद्ध
न बढ़े बात अगर खुल के करें वो बातें
बाइस-ए-तूल-ए-सुख़न कम-सुख़नी होती है
*ज़्यादा बोलने का नतीज़ा; कम-सुख़नी=कम बातचीत
लुट गया वो तिरे कूचे में धरा जिस ने क़दम
इस तरह की भी कहीं राह-ज़नी होती है
*कूचा=गली; राह-ज़नी=लूट लेना
हुस्न वालों को ज़िद आ जाए ख़ुदा ये न करे
कर गुज़रते हैं जो कुछ जी में ठनी होती है
हिज्र में ज़हर है साग़र का लगाना मुँह से
मय की जो बूँद है हीरे की कनी होती है
*हिज्र=जुदाई; कनी=कणिका
मय-कशों को न कभी फ़िक्र-ए-कम-ओ-बेश रही
ऐसे लोगों की तबीअत भी ग़नी होती है
*फ़िक्र-ए-कम-ओ-बेश=कम या ज़्यादा होने की चिंता
हूक उठती है अगर ज़ब्त-ए-फ़ुगाँ करता हूँ
साँस रूकती है तो बरछी की अनी होती है
*ज़ब्त-ए-फ़ुगाँ=दर्द की बर्दाईश; अनी=नोक
अक्स की उन पर नज़र आईने पर उन की निगाह
दो कमाँ-दारों में नावक-फ़गनी होती है
*कमाँ-दारों=बिना किसी कमी के; नावक-फ़गनी=(छोटे छोटे) तीर चलाना
पी लो दो घूँट कि साकी की रहे बात ‘हफीज़’
साफ़ इंकार में ख़ातिर-शिकनी होती है
*ख़ातिर-शिकनी=मेज़बान की बेइज्जती
~ हफीज़ जौनपुरी
Apr 13, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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