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Saturday, April 30, 2016

शाम आई तो कोई ख़ुश-बदनी



शाम आई तो कोई ख़ुश - बदनी याद आई
मुझे इक शख़्स की वादा-शिकनी याद आई
*ख़ुश-बदनी=सुंदर बदन वाली; वादा-शिकनी=वादा तोड़ना

मुझे याद आया कि इक दौर था सरगोशी का
आज उसी दौर की इक कम-सुखनी याद आई
*सरगोशी=कान में कहना; कम-सुखनी=कम बोलना

मसनद-ए-नग़्मा से जो रंग-ए-तबस्सुम उभरा
खिलखिलाती हुई इक ग़ुंचा-दहनी याद आई
*मसनद-ए-नग़्मा=गीत की गद्दी; ग़ुंचा-दहनी=प्रेमिका

लब जो याद आये तो बोसों की ख़लिश जाग उठी
फूल महके तो मुझे फिर बे-चमनी याद आई
*बोसों=चुम्बन; ख़लिश=इच्छा; बे-चमनी=चमन का न होना

फिर तसव्वुर में चली आई महकती हुई शब
और सिमटी हुई बे पैरहनी याद आई
*तसव्वुर=सपना; बे पैरहनी=बग़ैर पहनावे के

हाँ कभी दिल से गुज़रता था जुलूस-ए-ख़्वाहिश
आज उसी तरह की इक नारा-ज़नी याद आई
*नारा-ज़नी=नारे बाज़ी

किस्सा-ए-रफ़्ता को दोहरा तो लिया 'अज़्म' मगर
किस मसाफ़त पे तुम्हें बे-वतनी याद आई
*रफ़्ता=चले जाना; मसाफ़त=सफ़र;

~ अज़्म बहज़ाद


  Apr 22, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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