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Friday, April 8, 2016

फूल-सी हो फूलवाली।



फूल-सी हो फूलवाली।
किस सुमन की सांस तुमने
आज अनजाने चुरा ली!

जब प्रभा की रेख दिनकर ने
गगन के बीच खींची।
तब तुम्हीं ने भर मधुर
मुस्कान कलियां सरस सींची,
किंतु दो दिन के सुमन से,
कौन-सी यह प्रीति पाली?
फूल-सी हो फूलवाली।

प्रिय तुम्हारे रूप में
सुख के छिपे संकेत क्यों हैं?
और चितवन में उलझते,
प्रश्न सब समवेत क्यों हैं?
मैं करूं स्वागत तुम्हारा,
भूलकर जग की प्रणाली।
फूल-सी हो फूलवाली।

तुम सजीली हो, सजाती
हो सुहासिनि, ये लताएं
क्यों न कोकिल कण्ठ
मधु ॠतु में, तुम्हारे गीत गाएं!
जब कि मैंने यह छटा,
अपने हृदय के बीच पा ली!
फूल सी हो फूलवाली।

‍ ~ रामकुमार वर्मा


  Mar 22, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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