मेरे उसके बीच का रिश्ता इक मजबूर ज़रूरत है
मैं सूखे ज़ज़्बों का ईंधन वो माचिस की तीली सी
देखूं कैसी फसल उगाता है मौसम तन्हाई का
दर्द के बीज की नस्ल है ऊँची, दिल की मिटटी गीली सी
मुझको बाँट के रख देती है धूप-छाँव के खेमों में
कुछ बेग़ैरत सी मसरूफ़ी, कुछ फुर्सत शर्मीली सी
*बेगैरत=निर्लज्ज; मसरूफ़ी=व्यस्तता
~ खुर्शीद अकबर
Mar 24, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
मैं सूखे ज़ज़्बों का ईंधन वो माचिस की तीली सी
देखूं कैसी फसल उगाता है मौसम तन्हाई का
दर्द के बीज की नस्ल है ऊँची, दिल की मिटटी गीली सी
मुझको बाँट के रख देती है धूप-छाँव के खेमों में
कुछ बेग़ैरत सी मसरूफ़ी, कुछ फुर्सत शर्मीली सी
*बेगैरत=निर्लज्ज; मसरूफ़ी=व्यस्तता
~ खुर्शीद अकबर
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