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Friday, April 8, 2016

मेरे उसके बीच का रिश्ता

मेरे उसके बीच का रिश्ता इक मजबूर ज़रूरत है
मैं सूखे ज़ज़्बों का ईंधन वो माचिस की तीली सी

देखूं कैसी फसल उगाता है मौसम तन्हाई का
दर्द के बीज की नस्ल है ऊँची, दिल की मिटटी गीली सी

मुझको बाँट के रख देती है धूप-छाँव के खेमों में
कुछ बेग़ैरत सी मसरूफ़ी, कुछ फुर्सत शर्मीली सी

*बेगैरत=निर्लज्ज; मसरूफ़ी=व्यस्तता

~ खुर्शीद अकबर


   Mar 24, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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