बहुत दिनों तक उम्मीदों से ताका तुम्हें जलधर
मगर क्या बात है ऎसी, कहीं गरजे कहीं बरसे
कहीं तो शोख सागर से, मचलते भूल मर्यादा
कहीं कोई अभागिन चातकी दो बूँद को तरसे
~ श्यामनन्दन किशोर
Apr 03, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
मगर क्या बात है ऎसी, कहीं गरजे कहीं बरसे
कहीं तो शोख सागर से, मचलते भूल मर्यादा
कहीं कोई अभागिन चातकी दो बूँद को तरसे
~ श्यामनन्दन किशोर
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