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Friday, April 8, 2016

बहुत दिनों तक उम्मीदों से

बहुत दिनों तक उम्मीदों से ताका तुम्हें जलधर
मगर क्या बात है ऎसी, कहीं गरजे कहीं बरसे
कहीं तो शोख सागर से, मचलते भूल मर्यादा
कहीं कोई अभागिन चातकी दो बूँद को तरसे

~ श्यामनन्दन किशोर

  Apr 03, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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