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Friday, April 8, 2016

जाम चलने लगे दिल मचलने लगे


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ज़िन्दगी जीने को दी, जी मैंने,
क़िस्मत में लिखा था पी, तो पी मैंने।
मैं न पीता तो तेरा लिखा गलत हो जाता
तेरे लिखे को निभाया, क्या ख़ता की मैंने

जाम चलने लगे दिल मचलने लगे चेहरे चेहरे पे रंगे-शराब आ गया
बात कुछ भी न थी बात इतनी हुई आज महफ़िल में वो बेनकाब आ गया

दिलकशी क्या कहें नाज़ुकी क्या कहें ताज़गी क्या कहें ज़िंदगी क्या कहें
हाथ में हाथ उसका वो ऐसे लगा जैसे हाथों में कोई गुलाब आ गया

हुस्न वाले तेरी बात रखनी पड़ी आ गयी इम्तिहाँ की वो आख़िर घडी
पूछ ले पूछ ले आइना ही तो है, देख ले आज तेरा जवाब आ गया

नाम अपना कहीं पर लिखा तो नहीं बस इसी बात का आज कर ले यक़ीं
आओ राही ज़रा पूछ कर देख ले अपने दिल की वो खोले किताब आ गया

~ सईद राही


  Apr 01, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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