
रंग भरी राग भरी राग सूं भरी री।
होली खेल्यां स्याम संग रंग सूं भरी, री।।
उडत गुलाल लाल बादला रो रंग लाल।
पिचकाँ उडावां रंग रंग री झरी, री।।
चोवा चन्दण अरगजा म्हा, केसर णो गागर भरी री।
मीरा दासी गिरधर नागर, चेरी चरण धरी री।।
हे सखि मैंने अपने प्रियतम कृष्ण के साथ रंग से भरी, प्रेम के रंगों से सराबोर होली खेली। होली पर इतना गुलाल उडा कि जिसके कारण बादलों का रंग भी लाल हो गया। रंगों से भरी पिचकारियों से रंग-रंग की धारायें बह चलीं। मीरा कहती हैं कि अपने प्रिय से होली खेलने के लिये मैं ने मटकी में चोवा, चन्दन, अरगजा, केसर आदि भरकर रखे हुये हैं। मीरा कहती हैं कि मैं तो उन्हीं गिरधर नागर की दासी हूँ और उन्हीं के चरणों में मेरा सर्वस्व समर्पित है।
~ मीरा बाई
Mar 23, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment