Disable Copy Text

Friday, April 8, 2016

मधुर मधुर मेरे दीपक जल

मधुर मधुर मेरे दीपक जल,
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर।

मिट मिट कर हर सांस लिख रही, शत शत मिलन-विरह लेखा,
निज को खो कर निमिष आँकते - अनदेखे चरणों की रेखा,
पल भर का यह स्वप्न तुम्हारी युग युग की पहचान बन गया,
पथ मेरा निर्वाण बन गया ।

~ महादेवी वर्मा


  Apr 05, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment