मधुर मधुर मेरे दीपक जल,
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर।
मिट मिट कर हर सांस लिख रही, शत शत मिलन-विरह लेखा,
निज को खो कर निमिष आँकते - अनदेखे चरणों की रेखा,
पल भर का यह स्वप्न तुम्हारी युग युग की पहचान बन गया,
पथ मेरा निर्वाण बन गया ।
~ महादेवी वर्मा
Apr 05, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर।
मिट मिट कर हर सांस लिख रही, शत शत मिलन-विरह लेखा,
निज को खो कर निमिष आँकते - अनदेखे चरणों की रेखा,
पल भर का यह स्वप्न तुम्हारी युग युग की पहचान बन गया,
पथ मेरा निर्वाण बन गया ।
~ महादेवी वर्मा
Apr 05, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment