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Saturday, April 30, 2016

रिश्तों ने बाँधा है जब से अनुबंध में



रिश्तों ने बाँधा है जब से अनुबंध में,
रंग नए दिखते हैं, गीतों में छंद में।

शब्द सभी अनुभव के अनुगामी लगते हैं
अनचाहे उन्मन से अधरों पर सजते हैं।
सब कुछ ही कह जाते अपने संबंध में,
रंग नए दिखते हैं गीतों में छंद में।

अंतर के भावों में सागर लहराता है,
सुधियों के बंधन से आकर टकराता है।
धीरज रुक जाता है अपने तटबंध में
रंग नए दिखते गीतों में छंद में।

नयनों में सतरंगे सपनों की डोली है,
साँसों में सरगम की भाषा है बोली है।
जीवन की उर्जा है परिचित-सी गंध में,
रंग नए दिखते हैं गीतों में छंद में।

नेहों की निधियों का संचय कर लेने को,
सुधियों में स्नेहिल-सी बातें भर लेने को।
आतुर मन रहता है इसके प्रबंध में,
रंग नए दिखते हैं गीतों में छंद में।

~ अजय पाठक


  Apr 30, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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