Disable Copy Text

Saturday, December 12, 2015

वादियाँ-वादियाँ, रास्ते-रास्ते



वादियाँ-वादियाँ, रास्ते-रास्ते
मारे मारे फिरे हम तेरे वास्ते।

आबशारों से पूछा कहाँ हैं सनम
और नज़ारों के जा जा के, पकड़े क़दम
इन बहारों ने फ़रमाया, क्या जाने हम
खा रहा है हमें अब, जुदाई का ग़म।
छाले पड़ते गए भागते-भागते।

*आबशारों=झरने

मचली जाएँ लटें, लिपटी जाए हवा
जलता जाए बदन, रोती जाए वफ़ा
बेवफ़ा मत सता, मिल भी जा - आ भी जा
कि ख़ता क्या बता, क्यों ये दे दी सज़ा।
आँखें पथरा गईं जागते-जागते।

~ नूर देवासी


  Dec 12, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment