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Friday, December 11, 2015

ओ बदगुमाँ तू जितना भी चाहे

ओ बदगुमाँ तू जितना भी चाहे गुरेज़ कर
बन्दा तेरे मिलाप का उम्मीद - वार है,
तू छुपके भी आएगा तो जाएगा किधर
कहते हैं जिसको ज़ीस्त तेरी रहगुज़ार है।

*गुरेज़=बचाव; ज़ीस्त=ज़िन्दगी; रहगुज़ार=रास्ता

~ अबदुल हमीद 'अदम'

  Nov 14, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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