प्राण पत्थर थे, अब फूलमाला हुये
हम अँधेरों में हँसता उजाला हुये
प्रीति के रंग ने जब हमें रंग दिया
हम स्वयं प्यार की रंगशाला हुये।
*रंगशाला=रंगभूमि, खेलने का घर
~ कुँवर बेचैन
Dec 2, 2015| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
हम अँधेरों में हँसता उजाला हुये
प्रीति के रंग ने जब हमें रंग दिया
हम स्वयं प्यार की रंगशाला हुये।
*रंगशाला=रंगभूमि, खेलने का घर
~ कुँवर बेचैन
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