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Friday, December 11, 2015

सुरमई शाम के उजालों से



सुरमई शाम के उजालों से, जब भी सज-धज के रात आती है
बेवफ़ा, बेरहम, ओ बेदर्दी, जाने क्यों तेरी याद आती है।

इस जवानी ने क्या सज़ा पाई, रेशमी सेज हाय तनहाई,
शोख़ जज़्बात ले हैं अँगड़ाई,आँखें बोझल हैं नींद हरजाई,
तेरी तस्वीर तेरी परछाईं दे, के आवाज़ फिर बुलाती है।

आज भी लम्हे वो मोहब्बत के गर्म साँसों से लिपटे रहते हैं,
अब भी अरमान तेरी चाहत के महकी ज़ुल्फ़ों में सिमटे रहते हैं,
तुझको भूलें तो कैसे भूलें हम, बस यही सोच अब सताती है।

वो भी क्या दिन थे जब कि हम दोनों, मरने-जीने का वादा करते थे
जाम हो ज़हर का कि अमृत का, साथ पीने का वादा करते थे।
ये भी क्या दिन हैं क्या क़यामत है ग़म तो ग़म है ख़ुशी भी खाती है।

~ नूर देवासी


  Nov 26, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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