अपनी हालत छुपाए जाता हूँ
बे-महल मुस्कराये जाता हूँ
ख़ुद हूँ महज़ूं मगर ज़माने को
बेतहाशा हँसाऐ जाता हूँ।
*बे-महल=बेमौका; महज़ूं=शोकाकुल
~ ख़ुमार बाराबंकवी
Dec 7, 2015| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
बे-महल मुस्कराये जाता हूँ
ख़ुद हूँ महज़ूं मगर ज़माने को
बेतहाशा हँसाऐ जाता हूँ।
*बे-महल=बेमौका; महज़ूं=शोकाकुल
~ ख़ुमार बाराबंकवी
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