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Friday, December 11, 2015

तुम को देखा तो नहीं है लेकिन




सुबह की धूप
खुली शाम का रूप
फ़ाख़्ताओं की तरह सोच में डूबे तालाब
अज़नबी शहर के आकाश
धुंधलकों की किताब
पाठशाला में
चहकते हुए मासूम गुलाब

घर के आँगन की महक
बहते पानी की खनक
सात रंगों की धनक

तुम को देखा तो नहीं है लेकिन
मेरी तन्हाई में
ये रंग-बिरंगे मंज़र
जो भी तस्वीर बनाते हैं
वह
तुम जैसी है।

~ निदा फ़ाज़ली


  Nov 13, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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