ज़िन्दगी ये तो नहीं, तुझको सँवारा ही न हो
कुछ न कुछ हमने तिरा क़र्ज़ उतारा ही न हो
शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ
न मिले भीक तो लाखों का गुज़ारा ही न हो
~ जाँ निसार अख़्तर
Nov 22, 2015| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
कुछ न कुछ हमने तिरा क़र्ज़ उतारा ही न हो
शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ
न मिले भीक तो लाखों का गुज़ारा ही न हो
~ जाँ निसार अख़्तर
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