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Tuesday, April 7, 2015

फ़कीराना तबीयत थी बहुत

मनीष शुक्ल 
वैसवारे की माटी [उन्नाव के आसपास का इलाका]में खिले फूलों की खुशबू या उसकी शाश्वत  महक हिंदी साहित्य में अपनी गरिमा और ताज़गी के साथ आज भी मौजूद है |
मनीष शुक्ल का जन्म 24 जून  1971को  पुरवा ,जिला उन्नाव में हुआ था |उच्च शिक्षा लखनऊ विश्व विद्यालय से संपन्न हुई |लखनऊ विश्व विद्यालय से इन्होनें मानव शास्त्र विषय से स्नातकोत्तर उपाधि हासिल किया 
मनीष शुक्ल वैसवारे की माटी [उन्नाव के आसपास का इलाका]में खिले फूलों की 
खुशबू या उसकी शाश्वत महक हिंदी साहित्य में अपनी गरिमा और ताज़गी के साथ 
आज भी मौजूद है | मनीष शुक्ल का जन्म 24 जून 1971को पुरवा ,जिला उन्नाव में 
हुआ था |उच्च शिक्षा लखनऊ विश्व विद्यालय से संपन्न हुई |लखनऊ विश्व विद्यालय 
से इन्होनें मानव शास्त्र विषय से स्नातकोत्तर उपाधि हासिल किया

फ़कीराना  तबीयत  थी  बहुत  बेबाक लहजा  था
कभी मुझमें भी हँसता खेलता इक शख्स रहता था

बगूले  ही  बगूले  हैं  मिरी   वीरान  आँखों  में
कभी इन रेगज़ारों में कोई दरिया  भी बहता था

तुझे  जब देखता हूँ तो ख़ुद अपनी याद आती है
मिरा  अंदाज़  हंसने का  कभी तेरे ही  जैसा था

कभी   परवाज़ पर मेरी  हज़ारों  दिल धड़कते  थे
दुआ करता था कोई तो कोई ख़ुशबाश कहता था

कभी ऐसे ही  छाईं थीं  गुलाबी  बदलियाँ  मुझ  पर.
कभी फूलों की सुहबत से मिरा दामन भी महका था

मैं था जब कारवां के साथ तो गुलज़ार थी दुनिया
मगर तन्हा हुआ तो हर तरफ सहरा ही सहरा था

बस इतना याद है सोया था इक उम्मीद सी लेकर
लहू  से  भर  गयीं  आंखें न जाने ख़्वाब कैसा था

~ मनीष शुक्ल

  Oct 25, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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