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Tuesday, April 7, 2015

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ

Akhlaq Mohammad Khan Shaharyar

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता

जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है
ज़ुबां मिली है मगर हम-ज़ुबां नहीं मिलता

बुझ सका है भला कौन वक्त के शोले
ये ऐसी आग है जिसमें धुआं नहीं मिलता

तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार न हो
जहाँ उमीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता

~ शहरयार

  Jul 4, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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