कल कहाँ किसने कहा
देखा सुना है
फिर भी मैं कल के लिए
जीता रहा हूँ।
आज को भूले शंका सोच
भय से कांपता
कल के सपने संजोता रहा हूँ।
फिर भी न पाया कल को
और
कल के स्वप्न को
जो कुछ था मेरे हाथ
आज
वही है आधार मेरा
कल के सपने संजोना
है निराधार मेरा
यदि सीख पाऊँ
मैं जीना आज
आज के लिए
तो कल का
स्वप्न साकार होगा
जीवन मरण का भेद
निस्सार होगा
जो कल था वही है आज
जो आज है वही कल होगा
मैं कल कल नदी के नाद
सा बहता रहा हूँ।
~ रणजीत कुमार मुरारका
Dec 26, 2011| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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