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Tuesday, April 14, 2015

तुझे खो कर भी तुझे पाऊँ




तुझे खो कर भी तुझे पाऊँ जहाँ तक देखूँ ,
हुस्न-ऐ-याज्दान से तुझे हुस्न-ऐ-बुतां तक देखूँ |
*हुस्न-ऐ-याज्दान=ईश्वरीय सुंदरता; हुस्न-ऐ-बुतां=बुतों की सुंदरता

तूने यूं देखा है जैसे कभी देखा ही न था,
मैं तो दिल में तेरे क़दमों के निशाँ तक देखूँ|

सिर्फ़ इस शौक़ में पूछी हैं हजारों बातें ,
मैं तेरा हुस्न, तेरे हुस्न-ऐ-बयान तक देखूँ |

वक़्त ने जेहन में धुंधला दिए तेरे खद्दा-ओ-खाल,
यूं तो मैं टूटते तारों का धुंआ तक देखूँ |
*खद्दा-ओ-खाल=रूप

दिल गया था तो ये आँखें भी कोई ले जाता,
मैं फ़क़त एक ही तस्वीर कहाँ तक देखूँ |

एक हकीक़त सही फिरदौस में हूरों का वजूद,
हुस्न-ऐ-इंसान से निपट लूँ तो वहाँ तक देखूँ !!
*फिरदौस=स्वर्ग

~
अहमद नदीम क़ासमी

  Apr 14, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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