अल्हड़ बीकानेरी की गजल की गुदगुदाती पंक्तियां हैं -
मंत्र पढ़वाए जो पंडित ने वे हम पढ़ने लगे,
यानी मैरेज की कुतुबमीनार पर चढ़ने लगे।
आए दिन चिंता के फिर दौरे हमें पड़ने लगे
इनकम उतनी ही रही बच्चे मगर बढ़ने लगे॥
रामावतार चेतन की एक गजल की पंक्तियां हैं -
आप आए तो मगर कुछ देर से आए,
काफिया है तंग ऐसे शेर से आए।
आप अपने तर्क का प्रतिवाद लगते हैं,
आप मौलिक हैं, मगर अनुवाद लगते हैं॥
धार और प्रवाह का जोर - प्रदीप चौबे की पंक्तियां इसी ओर इशारा करती हैं -
गरीबों का बहुत कम हो गया है वेट क्या कीजै,
अमीरों का निकलता जा रहा है पेट क्या कीजे?
हमारी अर्जियां क्यों कर नहीं उड़ती हवाओं में,
नहीं रख पाए हम चांदी का पेपरवेट क्या कीजै?
राजनीति, प्रशासन, संस्कृति, शिक्षा, समाज-हर तरफ एक जैसे विघटन और स्खलन के इस दौर में सूर्य कुमार पांडे की पंक्तियां हैं -
आज सड़कों पे सांप निकले हैं,
लोग कहते हैं आप निकले हैं।
भ्रष्ट जिनको समझ रहे थे हम
आप उनके भी बाप निकले हैं॥
रिश्वत की दुधारी वृत्ति पर काका जी;
कूटनीति मंथन करी, प्राप्त हुआ यह ज्ञान,
लोहे से लोहा कटे, यह सिद्धांत प्रमान।
यह सिद्धांत प्रमान, जहर से ज़हर मारिए,
चुभ जाए काँटा, काँटे से ही निकालिए।
कहँ काका कवि, काँप रहा क्यों रिश्वत लेकर,
रिश्वत पकड़ी जाए, छूट जा रिश्वत देकर।
Aug 16, 2011| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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