इक पटरी पर सर्दी में अपनी तक़दीर को रोए
दूजा जुल्फ़ों की छाओं में सुख की सेज पे सोए
राज सिंहासन पर इक बैठा और इक उसका दास
भए कबीर उदास
ऊँचे ऊँचे ऐवानों में मूरख हुकम चलाएं
क़दम क़दम पर इस नगरी में पंडित धक्के खाएं
धरती पर भगवान बने हैं धन है जिनके पास
भए कबीर उदास
गीत लिखाएं पैसे ना दे फिल्म नगर के लोग
उनके घर बाजे शहनाई लेखक के घर सोग
गायक सुर में क्योंकर गाए क्यों ना काटे घास
भए कबीर उदास
कल तक जो था हाल हमारा हाल वही हैं आज
‘जालिब’ अपने देस में सुख का काल वही है आज
फिर भी मोची गेट पे लीडर रोज़ करे बकवास
भए कबीर उदास
~ हबीब जालिब
Oct 7, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment