दिल भी वो है, धडकन भी वो।
चेहरा भी वो, दरपन भी वो।
जीवन तो वो पहले भी था
अब जीवन का दर्शन भी वो।
आजादी की परिभाषा भी
जनम जनम का बंधन भी वो।
बिंदी की खामोशी भी है
खन खन करता कंगन भी वो।
प्रश्नों का हल लगता भी है
और जटिल सी उलझन भी वो।
~ विज्ञान व्रत
Nov 18, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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