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Tuesday, April 7, 2015

फिर मेरे शहर से गुज़रा है वो

Parvin Shakir

फिर मेरे शहर से गुज़रा है वो बादल की तरह
दस्ते-गुल फैला हुआ है मेरे आँचल की तरह ।
*दस्ते-गुल=पंखुड़ी


कह रहा है किसी मौसम की कहानी अब तक
जिस्म बरसात मे भीगे हुये जंगल की तरह ।

ऊंची आवाज़ मे उसने तो कभी बात न की
खफगियों में भी वो लहजा रहा कोयल की तरह।
*खफगियों=नाराजगी

मिल के उस शख्श से मैं लाख खामोशी से चलूँ
बोल उठती है नज़र पाँव के छागल की तरह ।

पास जब तक वो रहे दर्द थमा रहता है
फैलता जाता है फिर वो आँख के काजल की तरह ।

अब किसी तौर से घर जाने की सूरत ही नहीं
रास्ते मेरे लिए हो गए हैं दलदल की तरह ।

जिस्म के तीरओ -आसेबज़दा मंदिर में
दिल सरे शाम सुलग उठता है संदल की तरह ।

~ परवीन शाकिर

  May 27, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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