तुम्हारे पाँवों के नीचे कोई ज़मीन नहीं ,
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं |
मैं बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूँ
मैं इन नज़ारों का अंधा तमाशबीन नहीं |
तेरी जुबान है झूठी जम्हूरियत की तरह
तू एक ज़लील सी गाली से बेहतरीन नहीं |
तुम्हीं से प्यार जताएँ तुम्हीं को खा जायें ,
अदीब यों तो सियासी है पर कमीन नहीं |
तुझे क़सम है खुदी को बहुत हलाक न कर ,
तू इस मशीन का पुर्ज़ा है ,तू मशीन नहीं |
बहुत मशहूर हैं आयें जरुर आप यहाँ
ये मुल्क देखने के लायक़ तो है ,हसीन नहीं |
ज़रा सा तौर -तरीकों में हेर -फेर करो ,
तुम्हारे हाथ में कालर हो आस्तीन नहीं |
~ दुष्यंत कुमार
Dec 12, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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