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Wednesday, April 8, 2015

इबादत करते हैं जन्नत की तमन्ना में

‘जोश’ मलीहाबादी
05 दिसंबर 1898 - 22 फ़रवरी 1982
 
प्रसिद्ध उर्दू शायर ‘जोश’ मलीहाबादी को उनकी बग़ावत पसंद नज्मों के कारण अंग्रेजों के ज़माने में शायरे इन्कलाब की उपाधि दी गई और लोग उन्हें पढ़ते हुए जेल भेजे जाते थे। उनमें अभिव्यक्ति की उद्भुत शक्ति थी। वे अल्फाज़ में आग भर सकते थे और दिलों में आग लगा सकते थे। बाद में पाकिस्तान चले जाने के कारण उनका विरोध भी हुआ लेकिन उनकी रचनाएँ कभी नहीं भुलाई जा सकेंगी।
इबादत करते हैं जो लोग जन्नत की तमन्ना में
इबादत तो नहीं है इक तरह की वो तिजारत[1] है

जो डर के नार-ए-दोज़ख़[2] से ख़ुदा का नाम लेते हैं
इबादत क्या वो ख़ाली बुज़दिलाना एक ख़िदमत है

मगर जब शुक्र-ए-ने'मत में जबीं झुकती है बन्दे की
वो सच्ची बन्दगी है इक शरीफ़ाना इत'अत[3] है

कुचल दे हसरतों को बेनियाज़-ए-मुद्दा[4] हो जा
ख़ुदी को झाड़ दे दामन से मर्द-ए-बाख़ुदा[5] हो जा

उठा लेती हैं लहरें तहनशीं[6] होता है जब कोई
उभरना है तो ग़र्क़-ए-बह्र-ए-फ़ना[7] हो जा

1. व्यापार
2. जहन्नुम की आग
3. समर्पण
4. किसी के लक्ष्य की तरफ ध्यान न दे
5. खुदा का भक्त
6. पानी में डूबता
7. मौत के गहरे समुन्दर में डूब

~  जोश मलीहाबादी

  Nov 24, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh


जोश’ मलीहाबादी 05 दिसंबर 1898 - 22 फ़रवरी 1982 प्रसिद्ध उर्दू शायर ‘जोश’ मलीहाबादी को उनकी बग़ावत पसंद नज्मों के कारण अंग्रेजों के ज़माने में शायरे इन्कलाब की उपाधि दी गई और लोग उन्हें पढ़ते हुए जेल भेजे जाते थे। उनमें अभिव्यक्ति की उद्भुत शक्ति थी। वे अल्फाज़ में आग भर सकते थे और दिलों में आग लगा सकते थे। बाद में पाकिस्तान चले जाने के कारण उनका विरोध भी हुआ लेकिन उनकी रचनाएँ कभी नहीं भुलाई जा सकेंगी।

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