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Wednesday, April 8, 2015

क्यों प्यार किया

Geetkar Shailendra (30 अगस्त, 1923 - 14 दिसम्बर, 1966)
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३० अगस्त 1923 में रावलपिंडी में पैदा हुआ. पिताजी फ़ौज में थे. रहने वाले हैं बिहार के. पिता के रिटायर होने पर मथुरा में रहे, वहीं शिक्षा पायी. हमारे घर में भी उर्दू और फ़ारसी का रिवाज था लेकिन मेरी रुचि घर से कुछ भिन्न ही रही. हाईस्कूल से ही राष्ट्रीय ख़याल थे. सन 1942 में बंबई रेलवे में इंजीनियरिंग सीखने आया. अगस्त आंदोलन में जेल गया. कविता का शौक़ बना रहा. अगस्त सन् 1947 में श्री राज कपूर एक कवि सम्मेलन में मुझे पढ़ते देखकर प्रभाविर हुए. मुझे फ़िल्म 'आग' में लिखने के लिए कहा किन्तु मुझे फ़िल्मी लोगों से घृणा थी. सन् 1948 में शादी के बाद कम आमदनी से घर चलाना मुश्किल हो गया. इसलिए श्री राज कपूर के पास गया. उन्होंने तुरन्त अपने चित्र 'बरसात' में लिखने का अवसर दिया. गीत चले, फिर क्या था, तबसे अभी तक आप लोगों की कृपा से बराबर व्यस्त हूँ.
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मेरा विचार है कि इससे ज़्यादा लिखूँ तो परिचय संक्षिप्त न रहकर दीर्घ हो जायेगा.
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ये आत्म परिचय शैलेन्द्र ने 18 जनवरी 1957 को लिखा था, अपने मित्र विश्वेश्वर को लिखे एक ख़त में.

जिसने छूकर मन का सितार,
कर झंकृत अनुपम प्रीत-गीत,
ख़ुद तोड़ दिया हर एक तार,
मैंने उससे क्यों प्यार किया ?

बरसा जीवन में ज्योतिधार,
जिसने बिखेर कर विविध रंग,
फिर ढाल दिया घन अंधकार,
मैंने उससे क्यों प्यार किया ?

मन को देकर निधियां हज़ार,
फिर छीन लिया जिसने सब कुछ,
कर दिया हीन चिर निराधार,
मैंने उससे क्यों प्यार किया ?

जिसने पहनाकर प्रेमहार,
बैठा मन के सिंहासन पर,
फिर स्वयं दिया सहसा उतार,
मैंने उससे क्यों प्यार किया ?

~ शैलेन्द्र (1946 में रचित)

  Dec 3, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh


३० अगस्त 1923 (14 दिसम्बर, 1966) में रावलपिंडी में पैदा हुआ. पिताजी फ़ौज में थे. रहने वाले हैं बिहार के. पिता के रिटायर होने पर मथुरा में रहे, वहीं शिक्षा पायी. हमारे घर में भी उर्दू और फ़ारसी का रिवाज था लेकिन मेरी रुचि घर से कुछ भिन्न ही रही. हाईस्कूल से ही राष्ट्रीय ख़याल थे. सन 1942 में बंबई रेलवे में इंजीनियरिंग सीखने आया. अगस्त आंदोलन में जेल गया. कविता का शौक़ बना रहा. अगस्त सन् 1947 में श्री राज कपूर एक कवि सम्मेलन में मुझे पढ़ते देखकर प्रभाविर हुए. मुझे फ़िल्म 'आग' में लिखने के लिए कहा किन्तु मुझे फ़िल्मी लोगों से घृणा थी. सन् 1948 में शादी के बाद कम आमदनी से घर चलाना मुश्किल हो गया. इसलिए श्री राज कपूर के पास गया. उन्होंने तुरन्त अपने चित्र 'बरसात' में लिखने का अवसर दिया. गीत चले, फिर क्या था, तबसे अभी तक आप लोगों की कृपा से बराबर व्यस्त हूँ. 
मेरा विचार है कि इससे ज़्यादा लिखूँ तो परिचय संक्षिप्त न रहकर दीर्घ हो जायेगा. 

ये आत्म परिचय शैलेन्द्र ने 18 जनवरी 1957 को लिखा था, अपने मित्र विश्वेश्वर को लिखे एक ख़त में.

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