प्रिय इन नयनों का अश्रु-नीर !
दुख से आविल सुख से पंकिल,
बुदबुद् से स्वप्नों से फेनिल,
बहता है युग-युग अधीर !
जीवन-पथ का दुर्गमतम तल
अपनी गति से कर सजग सरल,
शीतल करता युग तृषित तीर !
इसमें उपजा यह नीरज सित,
कोमल कोमल लज्जित मीलित;
सौरभ सी लेकर मधुर पीर !
इसमें न पंक का चिह्न शेष,
इसमें न ठहरता सलिल-लेश,
इसको न जगाती मधुप-भोर !
तेरे करुणा-कण से विलसित,
हो तेरी चितवन में विकसित,
छू तेरी श्वासों का समीर !
~ महादेवी वर्मा
Apr 17, 2011| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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