44वें ज्ञानपीठ पुरस्कार के विजेता, शायर अखलाक मुहम्मद खान
शहरयार को सबसे ज्यादा लोकप्रियता 1981 में आई फिल्म उमराव
जान (जुस्तुजू जिसकी थी उसको तो न पाया हम ने) से मिली;
जिंदगी जैसी तमन्ना थी, नहीं, कुछ कम है
हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है
घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
अपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है
बिछड़े लोगों से मुलकात कभी फिर होगी
दिल में उम्मीद तो काफ़ी है, यकीं कुछ कम है
अब जिधर देखिये लगता है कि इस दुनिया में
कहीं कुछ चीज़ ज़ियादा है कहीं कुछ कम है
आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब
ये अलग बात है पहली सी नहीं, कुछ कम है
~ शहरयार
Junl 4, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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