मैं जिसे ओढ़ता -बिछाता हूँ,
वो गज़ल आपको सुनाता हूँ |
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ |
तू किसी रेल सी गुजरती है,
मैं किसी पुल -सा थरथराता हूँ |
हर तरफ़ एतराज़ होता है,
मैं अगर रोशनी में आता हूँ |
एक बाजू उखड़ गया जब से,
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ |
मैं तुझे भूलने की कोशिश में,
आज कितने करीब पाता हूँ |
कौन ये फासला निभाएगा,
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ |
~ दुष्यंत कुमार
Dec 12, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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