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Tuesday, April 7, 2015

हाथ न आये छांव गिलहरी।

Vigyan Vrat
जन्म 17 जुलाई 1943 को मेरठ के टेरा गांव में।
दुष्यन्त के बाद हिन्दी गज़ल में जो महत्वपूर्ण नाम उभर कर आये उनमे विज्ञान व्रत का नाम बड़े आदर से लिया जाता है| जगजीत सिंह जैसे नामचीन गायक ने विज्ञान व्रत की गज़लों को अपना रेशमी स्वर दिया है| 
1966 में आगरा विश्व विद्यालय से फाईन आर्ट्स में स्नातकोत्तर उपाधि
कृतियाँ:
बाहर धूप खड़ी है ,चुप कि आवाज ,जैसे कोई लूटेगा ,तब तक हूँ ,महत्वपूर्ण गज़ल संग्रह हैं खिड़की भर आकाश इनके दोहों का संकलन है |

सीधी सादी बात इकहरी।
हम क्‍या जाने लहजा शहरी।

एक सभ्‍यता गूंगी बहरी
आकर मेरी बस्‍ती ठहरी।

जबसे बैठा बाहर प्रहरी
और डरी है घर की देहरी।

मैदानों में सिर्फ कटहरी
रातों उडकर थकी टिटहरी।

कौन दिखाता ख्‍वाब सुनहरी
अब तक जिंदा बूढी महरी।

जाने किसकी साजिश गहरी
मुझमें लगती रोज कचहरी।

सर पर ठहरी भरी दुपहरी
हाथ न आये छांव गिलहरी।

~  विज्ञान व्रत

  Oct 21, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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