ज़िंदगी का कारवां है चल रहा, चलता रहेगा !
नींद मेरी तारकों के झुरमुटों मे खो गई है,
सिंधु सूखा देख, मेरी प्यास पागल हो गई है,
नाश के चंचल चरण पर रख दिया यदि शीश मेंने -
तो न समझो तुम की मेरी चेतना ही सो गई है ,
कर दिया मजबूरियों ने पस्त फिर भी यह न सोचो
आमरण मे आंसुओं का सिलसिला ढलता रहेगा ।।
जानता हूँ सुख न छूटा एक संबल छूटने से
तार सपनों का न टूटा एक सपना टूटने से,
मानता हूँ मर गया दिल, अस्थियाँ ही शेष हैं, पर -
स्नेह का सागर न रीता आस का घाट फूटने से,
क्यों कि मेरी साधना मे सत्य का अभिनय नहीं है,
दीप मेरे प्यार का है जल रहा जलता रहेगा ।।
साँझ के पश्चात नभ मे खिल उठेंगे चंद तारे
आज आश्रय हीं हूँ तो कल मिलेंगे सौ सहारे
क्योंकि सबके विश्व में दिन एक से रहते नहीं हैं -
राख़ बन कर धूल मे मिल जाएंगे श्रिंगार सारे ।।
विश्व तो परिवर्तनों का सर्व सम्मत नाम ही है -
इस लिए विश्वास का तरु पल रहा, पलता रहेगा ।।
ज़िंदगी का कारवां है चल रहा, चलता रहेगा !
~ दुष्यंत कुमार
Sep 5, 2011| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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